Hindi Quote in Poem by Sudhir Srivastava

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दोहा -कहें सुधीर कविराय
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धार्मिक
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कृष्ण जन्म अब हो गया, छाया चहुँदिश हर्ष।
फैलेगा अब नित्य ही, खुशियों का उत्कर्ष।।

मन से कीजिए प्रार्थना, प्रभु का करके ध्यान।
जीवन के हर कष्ट का, होगा तब संधान।।

दीन दुखी जो भी करें, ईश्वर से अरदास।
पूरी हो हर कामना, जब मन में विश्वास।।

शनिदेव देते नहीं, सदा किसी को कष्ट।
केवल उतना दंड दें, जितना वो पथ भ्रष्ट।।

माता रानी कीजिए, कृपा सभी पर आप।
हर प्राणी का हो भला, मिटे शोक संताप।।

जप -तप के ही साथ में, करिए मानव कर्म।
नहीं किसी को कष्ट हो, मानवता का धर्म।।
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विविध
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करो सामना आप ही, रखो पावनी आस।
जीत आपकी हो तभी, कृष्ण सारथी खास।।

सदा सर्वदा युद्ध से, रखो फासला आप।
रखें भावना शांति की, पूर्ण कामना जाप।।

मानेगा तब शत्रु भी, करो सामना मित्र।
जायेगा तब वो समझ, अड़ा सामने चित्र।।

मानेगा तब शत्रु भी, करो सामना मित्र।
जाएगा तब समझ वो, अड़ा सामने चित्र।।

राम और रहमान का, खेल रहे जो खेल।
जाति धर्म की आड़ में, रोप रहे विषबेल।।

प्रकृति कह रही नित्य ही, सुनो लगाकर ध्यान।
अब भी जागे यदि नहीं, व्यर्थ जायगा ज्ञान।।

हरियाली का हम करें, रोज रोज संहार।
सह पाते हैं हम नहीं, उसका एक प्रहार।।

अपने मीठे बोल से, बनते अपने मीत।
मीठे बोलो शब्द दो, लो सबका दिल जीत।।

धन दौलत से है बड़ा, निज मानव विश्वास।
नाहक चिंता कर रहे, रखो ईश से आस।।

गंजों के बाजार में, बिकती कंघी खूब।
तकनीकों के ताल में, सभी रहे हैं डूब।।

राम नाम मम सम्पदा, राम नाम ही आस।
जपूंँ राम का नाम मैं, कर उन पर विश्वास।।

प्रभु सुमिरन करते रहें, संग में सारे काम।
रखो व्यस्त तुम स्वयं को, मन रखिए प्रभु नाम।।

दुख से नाता जब रहे, तब जीवन का भान।
रोकर मिलता है नहीं, कभी किसी को ज्ञान।।

धन दौलत से घर भरा, धरा यहीं रह जाय।
सच्चे झूठे कर्म का, बोझ साथ हो भाय।।

पढ़ते रहें किताब सब, मन रख शुद्ध विचार।
बनते वही महान हैं, जिनका सद व्यवहार।।

मन रख भाव कबीर का, चलते रहिए आप।
हो निदान हर कष्ट का, बिना किसी संताप।।

मातु पिता को आपने, घर से दिया निकाल।
अब तुमको क्यों मित्रवर, जैसे पड़ा अकाल।।

तुम भी रहो सचेत अब, जाना है उस धाम।
जहां ले रहे मातु-पितु, निज ईश्वर का नाम।।

जीवन एक किताब है,जाने सकल जहान।
जग प्रसिद्ध यह पाठ का,है अनेक विज्ञान।।

बनते वही महान हैं, जो पढ़ते रहे किताब।
मन पुनीत हो भावना, वैसा मिले जवाब।।

सुधीर श्रीवास्तव

Hindi Poem by Sudhir Srivastava : 111949155
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