सादर नमन मंच 💐🙏प्रस्तुत है स्वरचित ग़ज़ल
"हमको बनाके पत्थर वो कोहिनूर हो गए...."
दिल के हाथों अपने ही मजबूर हो गए
जिसको चाहा उससे ही हम दूर हो गए
हमारे दिल को दे के दर्द की सजा
दुनिया की नज़रों में वो बेकसूर हो गए
ऐसा दिया जख्म भरेगा नहीं कभी
गोया की चार दिन में ही नासूर हो गए
इश्क़ की बाजी जीतकर भी हार ही मिली
हमको बनाके पत्थर वो कोहिनूर हो गए
अब उनकी यादों को बना के एक ग़ज़ल
पीकर गुनगुनाते हुवे नशे में चूर हो गए
©ठाकुर प्रतापसिंह राणाजी
सनावद (मध्यप्रदेश )