मुस्कान की कहानी...
कितनी बार रोकती है वो अपनी आँखों
से बहते आँसुओं को अपनी ही आँख में
फिर भी उसी पल फैल जाती है मुस्कान
उसके सूखे अधरों पर....
उसके उन अधरों पर मुस्कान लाने की
कामयाब कोशिश किसी करिश्मे से कम
नहीं होती,जिसमें छिपी होती है कितनी
हिंसा और तिरस्कार....
वो हरदम जूझती है अपने आत्मसम्मान
से,अपने भीतर की ताकत से,उन व्याधियों
से जो हरपल उसे भीतर से कोंचते हैं,करते
हैं लहुलुहान उसकी आत्मा को....
हरदम दुख के दालानों से गुजरती,नहीं खोलती
वो बसंत देखने के लिए मन की खिड़की,बस ढाँप
लेती है आकाश का सारा अँधेरा अपने आँचल से
और जगमगाती है हरदम तारों की तरह.....
जीवन और मजबूरी का पाठ पढ़ती हुई,जुल्मों से
जूझती हुई,त्रिया चरित्तर का इल्जाम झेलती हुई
शायद यही उसकी खूबसूरत फ़नकारी है,है ना
कितनी जटिल उसके मुस्कान की कहानी......
समाप्त...
सरोज वर्मा...