इधर –उधर ताकती नजरे
पड़ोसियों के झांकती है घरे
कुछ ताकती है कांखियो से
कुछ रहती है दीवारों से कान चिपकाएं
कौन आया ? कौन गया ?
रहता है ध्यान
गिनती है चप्पले ।
फिर होती है खुसुर –फुसुर ,
बढ़ती है बात ।
फिर औरतों की बैठके, औरतों के साथ।
जमता है जमावड़ा ।
कोई बैठे ,
कोई सुनता है खड़ा
कुछ छूटा ,कुछ पकड़ा,
कुछ रहती नज़रे अड़ा
फिर घंटो होती है चुगलियां
और चलती है,हर घर की कहानियां।
-चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी