ए खुदा तू अपनी खुदायी संभाल
मुझे तेरे इस खेल में शामिल नहीं होना
जो वक्त बे वक्त बहता जाए
आंसुओं का वो दरिया नही होना
हर युग में अग्नि परीक्षा दे कर भी
सीता सा ताउम्र वनवासी नही होना
तू रचा ले रास हर गोपी के साथ
पर मुझे तेरे विरह में राधा सा पागल नहीं होना
जो टूट न पाए तुफानों से भी
मुझे सब्र का वो गहरा बांध नहीं होना
अब तू ही बता
क्यों मैं अबला कहलाऊ
क्यों पुरुष के नाम से जानी जाऊ
क्यों मेरे पहचान की रवानी नहीं
क्यों मेरी अपनी कोई कहानी नहीं
क्यों हर युग में मर मर के जिऊ
क्यों पवित्र हो कर भी मीरा सा जहर पीऊ
क्यों मेरा वजूद भी मुझ से सवाल करे
क्यों तेरा ये संसार मेरे जन्म पर भी बवाल करे
पर मेरे सवालों का जवाब तेरे खुदा के पास भी नहीं होना
सृष्टि निर्माण का आधार हो कर भी
हर दफा यूं अपमानित नही होना
तू लाख कर ले मनमानी
पर मुझे तेरे इस खेल में शामिल नहीं होना