माँ
जब से माँ नहीं है कुछ अच्छा नहीं लगता,
केया अपना केया पराया,
हर कोई डूबो ने मैं लगा है,
अब कोई रिश्ता अपना नहीं लगता.
माँ थी तो सब अपने थे, उसकी मौजुदगी से चहक ता था अगन,
अब ये खामोश घर मेरा नहीं लगता।
केया खुशी, केया गम, यूं तो हर तेवर पे खुश होते हैं हम, खुशियां भी मनई जाती हैं,
मगर,
माँ के बिना कोई ख़ुशी मोकम्मल नहीं लगती,
कोई तेवहार अच्छा नहीं लगता.
जब से माँ नहीं है कुछ अच्छा नहीं लगता।
सूना सूना सा है घर मेरा, सूनी सूनी सी चौखट मेरी,
अब मेरी चौकाहट पे कोई अपना नहीं आता,
जब से माँ नहीं है, मेरा घर, घर नहीं लगता,
अब कुछ अच्छा नहीं लगता.
By-M.A.K