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बच्चों की कल्पनाशीलताऔर उनकी संवेदनशीलता को बाहर निकालने एवं उभारने का एक तरीक़ा है कि उन्हें एक सिचुएशन एक प्रसंग दिया जाए और फिर उनसे कहा जाए कि देखिए हमारे अनुसार या शास्त्रों के अनुसार तो ये अंत है ये निर्णय है या समाधान है पर आप इस स्थिति को क्या मोड़ देना चाहेंगे?बच्चों से कहिए पात्रों को जिंदा रखते हुए कहानी के अंत को ऐसा मोड़ दो कि कहानी प्रेरणादायी बन जाए। जैसे बच्चों को कोई कहानी दें जैसे कक्षा चौथी पाँचवीं के बच्चों को हम बता सकते हैं कि लोमड़ी और बगुले की कहानी जिसमें लोमड़ी बगुले को खाने पर बुलाकर थाली में तरल पदार्थ परोसती है और बगुला खाने में असमर्थ होता है पर लोमड़ी जीभ से पूरा भोजन चाटकर ख़त्म कर देती है। अब बगुला अगले दिन अपने यहाँ उसे भोजन पर बुलाता है,और अब यहाँ आकर कहानी को रोक दें और बच्चों से कहे कि इसका अंत बताओ। बच्चों को कहानी को सुखद मोड़ देने के लिए कहें । इससे बच्चे विभिन्न प्रतिक्रियाएँ देंगे । हो सकता है कि चौथी कक्षा का छात्र कहानी को पाँचवीं छठी के बच्चों से ज़्यादा अच्छा रूप दे ।और इस प्रकार बच्चों की कल्पनाशीलता ,उनकी तार्किकता और उनकी संवेदनशीलता का परिमापन हो पाएगा ।
ऐसी कई कहानियाँ हैं जिनके अंत या शिक्षा सही नहीं है । जैसे इस कहानी से शिक्षा मिलती है “जैसे को तैसा “।पर हम कहानी के अंत को बदलकर बगुले के माध्यम से एक सुंदर संदेश दे सकते हैं कि बगुला दो पात्रों में भोजन परोसता है। स्वयं के लिये सुराही में और लोमड़ी के लिए थाली में । अर्थात् हम बच्चों को इस कहानी के माध्यम से ये शिक्षा दें कि जो आपके साथ ग़लत करे तो आप भी उसके साथ ग़लत मत करो बल्कि कुछ ऐसा करो कि उसे अपनी गलती का एहसास हो और आपसी रिश्ते टूटने से बचें ।
अगर बच्चों को एक सत्र के दौरान इस प्रकार दो तीन कहानियों या प्रसंगों पर परियोजना कार्य दिया जाये तो निश्चित रूप से उनकी कल्पनाशीलता , रचनात्मकता,और विश्लेषणात्मक क्षमता का विकास होगा और भाषा शिक्षण में इस गतिविधि को निश्चित रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
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