जब भी बारिश हो भीग जाया कर,
ये मन तू अब और ना घबराया कर।
अपने मन के भाव को अपने तक रख,
किसके पास है फुर्सत उसे सुनने समझने की,
तू खुद की गिरफ्त से बाहर तो निकल,
ये मन तू अब और ना घबराया कर।
अपने चहरे की ये प्यारी सी हसी को जिंदा रख,
जैसे पेड़ो में खिलते हैं फूल हर रोज नए,
तू उसके भांति अपने विचार से मिल,
तू खुद से अपना रिश्ता खुद ही निभाया कर,
ये मन तू अब और न घबराया कर।