कबीर दास जी के दोहे
कबीरा ते नर अंध हैं , गुरू को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर हैं, गुरु रूठै नहीं ठौर।।
साहेब बंदगी 🙏
भावार्थ - संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि जो मनुष्य गुरू के महत्व को नहीं समझते हुऐ गुरु का अनादर करता हैं वह नेत्र होते हुऐ भी नेत्रहीन के सामान हैं, क्योंकि यदि ईश्वर आपका साथ नही देते तो गुरु ही आपको राह दिखाकर उस परिस्थिति से बाहर निकाल सकते हैं परन्तु यदि गुरु ने ही साथ छोड़ दिया तो इस पृथ्वी पर और कोई सहारा नहीं मिल सकता।।