माधव।
ले चल मोहे कदंब तले जहां मुरली बजती है तेरी।
हाथ पकड़ले कहीं फिसल न जाएं कालिंदी नदिया
है बडी गहरी।
नाहि मिले अब कोई कूल किनारा जो भीषण भंवर में
जीवन नैया मेरी डगमग डोले हाय नैया डोले।
जीवन के दिन ना कटे मेरे माधव जो नागिन सी डसे
हौले हौले।
वृन्दावन में तरु पल्लव डोले और पर्वत गर्जन करे।
लहरों की अठखेलियों में मन मयूर नृत्य करे मोरे।
कहत बयार मन्द मन्द बहिके चल अब संग तू मेरे।
नाहि मिलेंगे प्रेम सखा अब जो चले गए मोह तज
बन परिंदे उड़कर बस टूटे पंख केवल हवा में डोले
हौले हौले।
जीव कहे मोहे ले चल अब पूरे हो गए हैं दिन मेरे।
कैसे कहें हे प्रेम सखा मेरे माधव ले चल मोहे अब
वृंदावन तेरे।
अरमान यही बचा है जो होगा तेरे चरणों में रहकर
मनभावन पतित पावन जग तारण हारे मेरे।
कर ले चरण शरण दूर रहे अब जीवन मरण से
जग जाए आतम जोत अंतर्मन में मेरे।
हो गई हाजिरी पूरी बस नहीं रही है कोई मजबूरी।
तो क्यों हे मेरे माधव रहे सहे अब आमरण मौत
के मातम सितम बहुतेरे।
चरणों में पड़ा हुआ है अधम दास बन कर असहाय
और अशक्त करते नित नित प्रणत नमन चरणों
में तेरे।
जय जय श्री कृष्णा कोटि-कोटि प्रणाम।
जय श्री वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
कोटि-कोटि प्रणाम।
-Anita Sinha