और फ़िलहाल खबर ये आ रही है की प्रेमचंद ने हिटलर को मार डाला। धारधार पेन की निब को गर्दन की नस में घोप दिया और हिलटर की गर्दन से सिरकटे मुर्गे की तरह लाल खून बहने लगा और चन्द पलों में हिटलर की मृत्यु हो गयी।
खबर ये है की प्रेमचंद को फांसी होगी होनी भी चाहिए ,शहर में दंगो का माहौल है और १०० लोगो के लापता होने की भी खबर है,
हम अब भी वजह जानने की कोशिश में है जिस कारण प्रेमचंद ने ऐसा कृत्य किया।
ये खबर आग की तरह फ़ैल गयी, हर कोई बस इसका जवाब खोजने में व्यस्त हो गए सबकी अपनी राय थी , कलमकारों ने इससे हिटलर की आपसी रंजिश का नतीजा बताया तो वाक्त्यवेत्ता इसे प्रेमचंद की मानसिक विकृति का नतीजा बताते है खैर जो भी हो खलिहर समाज को हल जोतने खातिर एक खली मैदान मिल गया जिसपे हर कोई अपने अंदाज़ में कुदाल चला रहा था।
तारीख़ तहरीर हुई प्रेमचंद ने अपने बचाव में बोला, "चूँकि मै कागज़ पर लिखता हूँ इसीलिए कागज़ पर लिखे को नहीं मानता।
अंत में फैसला आया वही आया जो आना चाहिए था प्रेमचंद को फांसी क सजा मिली और अगले ही दिन सुबह उसकी लाश की राख मछलियों को पिला दी गयी ।
कोर्ट के आदेश के अनुसार शहीद स्मारक के गेट पर हिटलर की एक मूर्ति लगा दी गयी। इस फैसले के विरोध में मंटो ने स्याही पी ली (सुर्ख लाल), बच्चन शराबी बन गए , महादेवी ने महाविद्यालय की चाक खा ली।
कोर्ट के इस शानदार फैसले का एक और अच्छा असर हुआ ,समाज के दीमक अरे !!!! दीमक मतलब अदीबो का अंत होने लगा।
वही घमंडी , हवाबाज़ , सुकोमल कवि और लेखक जिनके जीवन का आधार ही दूसरो की पीड़ा है। जिनकी रसोई ही मरे की चिता है, जो खुद सीलमपुर की गन्दी गलियों पे लिख बड़े बड़े पुरस्कार जीत जाते है।
इधर कुछ अदीब समर्थक गुट भी सक्रिय हो गए , खैर सरकार सतर्क थी , अरे !! ये कोई व्यंग्य नहीं है सच में।
दंगे भड़काने वालो से निपटने के लिए सरकार ने शिक्षा नीति ही बदल डाली। हिंदी और अंग्रेजी जैसे तमाम साहित्यिक विषय ख़त्म कर दिए गए।
साहित्य पढ़ाने वाले शिक्षकों को चपरी पाथने के काम में लगा दिया गया।
जिस देश में एक बड़ी आबादी चपरी पे चुगती हो ऐसे में सर्कार का यह निर्णय सामाजिक समानता को बढ़ाने का बेहतरीन कदम है।।।