निर्मल,शीतल शिखर हमारे
जड़-चेतन का मिलन भव्य है,
नक्षत्रों की बारात सजी है
यह दर्शन सहज हुआ दिव्य है।
यह उत्तर सब युग का है
पगडण्डी से दिखा सत्य है,
मानव की कठिनाई में
जड़ भी चेतन हो जाता है।
शिव ने तो लिखा कैलाश है
मन का वहाँ दिखा वास है,
टूटी धरती, बिखरा मानव
यहाँ सबका क्षणिक निवास है।
तू उठ तुझे कथा सुनाता
मानव की अनमोल बात है,
अपनी मुक्ति अपने हाथ है
किसको किसकी याद बात है!
* महेश रौतेला