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मैं शिखर रहूं या शून्य रहूं
चाहे बजता सा मृदंग रहूं
चाहे पास रहूं या दूर रहूं
तेरे दिल में अनंत रहूं
करुणा के गहरे सागर में
गोते खाता संघर्ष रहूं
तेरी सांस रहूं तेरी बात रहूं
तुझमें बैठा ब्रम्हांड रहूं
तू कल कल बहती पवित्र धारा है
मैं तुझमें घुलती सुगंध रहूं
मेरा प्रेम नहीं मैं कह सकता
इससे ज्यादा और क्या लिखूं
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सोलह श्रृंगार की सारी बातें एक तरफ
हल्के काजल की तेरी आंखे एक तरफ...!
मैं करता हूं लाखों बातें वैसे दिनभर में
पर तुझसे हुईं वो दो चार बातें एक तरफ...!
वैसे ये रात, ये बादल, ये चांद खूब नजरें हैं
बादलों सी लहराती लेकिन ये तेरी जुल्फें एक तरफ...!
नशें में वैसे बहुत चीजें हैं दुनिया में
लेकिन तेरे ये गुलाबी होठ एक तरफ...!
वैसे सपने हैं मेरे कई सारे लेकिन
देखूं जो में एक ख्वाब तुम्हारा एक तरफ...!