सोचते हैं
कल फिर सुबह होगी
शिक्षक और शिक्षा की।
हमारी भेंट पुनः होगी
हम पढ़-लिख बड़े हो जायेंगे,
शिक्षा और शिक्षक हमारे निकट आ
भगीरथ प्रयास से
ज्ञान की गंगा को पृथ्वी पर अक्षुण्ण रखेंगे।
समय हमारी चाह बन
नश्वरता को निकट नहीं आने देगा,
शिक्षक हमें
बीज से वृक्ष बना देंगे।
सोचते हैं
प्रदूषण की व्यापकता अस्त हो,
शिक्षा ऐसा अमृत हो
कि हमारा होना सार्थक हो।
* महेश रौतेला