क्षणभर बह जाऊँ ओ नदी
पलभर उछल जाऊँ ओ जलधि,
कुछ देर चढ़ जाऊँ ओ पहाड़
मनभर ठहरा रहूँ ओ पृथ्वी।
कुछ पल देखता रहूँ ओ नक्षत्र
आवागमन चलता रहे ओ प्राण,
सुखमय मौन धरूँ ओ जीवन
बातों में रिटता रहूँ ओ मनुष्य।
छाँव बैठता रहूँ ओ वृक्ष
प्रार्थना करता रहूँ ओ शान्ति,
सत्य पर टिका करूँ ओ चेतना
सुरसुर चलता रहूँ ओ हवा।
* महेश रौतेला