एक शाम ने मुझे चुन लिया था
प्यार का एक पत्र मुझे दे दिया था,
लिखे थे शब्द जो, वे गुनगुना रहे थे
जीने का अद्भुत मिजाज दिख रहा था ।
आसमान का बदन दूर दिख रहा था
मेरे हाथों में हाथ आ गया था ,
जिस शाम ने मुझे चुना था
उसी शाम में दिया जल रहा था ।
जो लोग मिले थे , स्वप्न से लगे थे,
जो दिन मिले थे , उम्र बन गए थे ,
जो आकांक्षा थी, वह रूकी हुई थी,
मेरी शाम पर , शहर बन गए थे।
जुड़े हुए हाथों में , बिछुड़े हुए थे ,
सुरीले स्वरों से ,कुछ गुनगुना रहे थे,
मेरी बातों को ,कोई सुन रहा था ,
कोई अनसुना कर ,कहीं चल रहा था।
ऐसी शाम भी थी जो शून्य हो गयी थी
ऐसा शब्द भी था,जोअमर बन गया था
मेरी शाम पर , कई पहाड़ बन गए थे
मेरी शाम से , कई गाँव जुड़ गए थे ।
* महेश रौतेला
१४.०८.२०१४