नई नवेली दुल्हन बन कर
कर के में सोलह श्रृंगार
निकल पड़ी में छोड़ पिता घर
आ पहुँची हूँ पिया के द्वार
देख रही हूँ इधर उधर में
मुझको कोई न पहचाने
घर की दीवारो से लेकर
लोग यहाँ पर सब अनजाने।
गूंज रही है पूरे घर मे
हंसी ठहाकों की फ़व्वार
भाभी चाची मामी कह के
लोग रहे है मुझे पुकार
देवर नन्द जेठ जेठानी
बाँट रहे सब अपना ज्ञान
नई नवेली तुम आई हो
कुछ दिन में जाओगी जान
माँ की शिक्षा मन में रख कर
ध्यान में रख कर पिता का ज्ञान
आँखें मेरी नम है पर
होंठों पर मेरे है मुस्कान
लेखक
जितेंद कुमार झा