दस्तान
मसला ही कहां था प्यार का |
वो हुनर बता रहे थे व्यापार का |
बस हम ही बेवकूफ बनते रहे ,
समय ही कहां था उन्हें प्यार का |
बस एक झूठ था उस इकरार का |
झूठ था अमल वादों के इरादों का|
हमें हर शब्द सच्चा ही लगा हर दम ,
वो मज़ाक ही उड़ाते रहे एहसास का |
किस्सा अजीब था उस बदकार का |
हुनर अज़ीम था उस फनकार का |
हम ही अश्क बहाते रहे ईमान से ,
उसे तो मज़ा आ रहा था तमाशे का |
आलोक मिश्रा "बुत"
-Alok Mishra