सावन जब फिर बरेसेगा
जब फिर गुलाब खिल जायेंगे
क्या तुम तब आओगे?
जब ये सारे कोरे पन्ने
मेरी कविता से भर जायेंगे
आंसुओ से फट जायेंगे।
टुकड़ों में बंट जायेंगे
क्या तुम तब आओगे?
घुट घुट गहरी काली घटा जब बिन बरसे मर जायेगी।
ठंडी ठंडी सर्द हवा जब हर आंसू को जमाएगी
चंदा होगा आसमान में पर चांदनी धुंधली हो जायेगी
क्या तुम तब आओगे
जब पेड़ों की पत्ती गिर जाएगी
सूखी पतझड़ शोर मचाएगी
कलियां सब सड़ जायेगी
क्या तुम तब आओगे
जब ये जोगन मर जायेगी