रक्षा का वो सूत्र जिसे बांधा जाता है कलाई पर
उस कलाई पर जो भाई की होती है
मजबूती से बांधती है वो प्यारी सी बहन
मस्तक पर करके तिलक उसके
इठला कर मांगती है उपहार
भाई थोड़ा सताता है लेकिन उस दिन
वह भी पूरी तैयारी से आया होता है
कलाई पर राखी बंधवाने का इंतजार उसे भी होता है।।
घर आई है व्यहावली बहन
लेकर मिठाई, राखी और उपहार
भाभी बैठी थी जो इंतजार में
भाग भाग कर निपटा रही है उसका काम
उसे भी जाना है उसकी भाभी भी है इंतजार में।।
अब मां ने जाना छोड़ दिया
बेटी घर जो आएगी और बहु भी मायके जाएगी
मां भेज देती है अब अपनी राखी
राखी आने से पहले ही
क्योंकि वह जानती है कि अब वह
सिर्फ बहन नहीं रही
अब वह मां होने के साथ बहू भी है।।
कुछ अधूरी कलाई ताकती रहती हैं
दूसरों के हाथ पर बंधे दस पंद्रह धागों और
मस्तक पर फैल चुके तिलक को
बहन नहीं थी उसके पास
एक उदासी छाई थी जहन में उसके
ना उसे उपहार देने थे किसी को
ना किसी के आने का इंतजार करना था
सताना तो छोड़ो अब मुस्कुराना भी ना आता
राखी के दिन वह भाई मायूसी से घर के बाहर ना जाता ।।
अब भी कुछ बाकी है क्या
आज राखी है क्या यह मत पूछो
जाकर खरीदो धागे पूजा के
बांध दो कृष्णा के हाथों में
जिनके भाई नहीं है कोई
कृष्णा उनके भाई ही होते हैं।।
सजा लो थाली तुम अपनी
राखी के धागों से
रखो मस्तक का तिलक और
अक्षत के दानों को संग में
लाओ घेवर भी खरीद के तुम
मुख मीठा कराने को
मनाओ रक्षा बंधन तुम
सिर्फ कहने को नहीं भाइयों
बहन की रक्षा का वादा पूरा करना है तुमको
हर धागा कुछ कहता है जो
एक वादे से जुड़ा होता है
इसीलिए तो इसे रक्षासूत्र माना जाता है।।
-कंचन सिंगला