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Kanchan Singla

Kanchan Singla

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रात के सन्नाटे गूंजते हैं मुझमें
मैं खंडहर पड़ा वो मकान हूं
जो जर्जर हालत में पड़ा यूं
भयानक नजर आता है
यह देखने वालों का नजरिया है
मुझमें पलते हैं शांति से अनेक जीव
कहीं कोनों में बने हैं अनेक बिल
कहीं किनारों से लटकती मकड़ियां हैं
छिपकली, झिंगुर हो या कोकरोच
सब स्वछंदता से जीते हैं
रात के इन सन्नाटों में
जीवन गूंजता है मुझमें कहीं ।।

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जिंदगी ने उम्मीदों पर पानी फेरा है
तुम सावन की बरसात समझ लेना इसे ।।

मैं हर शब्द का हिसाब लूंगी तुमसे
तुम चुकता कर देना, जो बकाया होगा
वह हर नए शब्द के साथ जुड़ता जाएगा।।
- Kanchan Singla

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ना इश्क की तलाश, ना मजहब की
तलाश है तो बस इन्सान के इन्सान होने की।।


- कंचन सिंगला 💛