*जिंदगी*
उलझनों से पूछ लो
किस राह ठहरी जिंदगी
किस गली में शोर है
किसने कितनी समझी जिंदगी।
मान लो उन्माद है
मिलता कहां स्वाद है
कसौटियों में परखते हैं
आँच खाती जिंदगी।
जब मिलो तो पूछना
कितना निखर पाई है
तालियों के शोर में
बस बिखर रही है जिंदगी।
नमी की इक बून्द भी
देख नजर आती नहीं
कितना मेकअप चेहरे पर
लिए घूमती है जिंदगी।
स्टेटस में चूर है
घमंड से मगरूर है
किस रास्ते चल पड़ी
कितना भटकती है जिंदगी।
अर्श पर चढ़ने की
होड़ चहु ओर है
कौन देखता जमीन को
छिटकी पड़ी है जिंदगी।
शब्द नहीं मिल रहे है
निशब्द भी शोर है
कटी हुई चंचला का
अभाव लिए जिंदगी।
एक तो संकल्प उठा
जात का भरम शेष है
रे मनुष्य, कभी पूछ तो
क्या मांगती है जिंदगी।
#रश्मि_रश