नींद आँखों से गुज़र जाए तो बुलाऊ कैसे
आज फिर ख्वाब दिखे तो आजमाऊँ कैसे
अबके बारिश भी मेरी नमी चुरा कर गई
इतना बिखरा का समंदर पास आऊँ कैसे
जानते है हम जिसे वो मेरा रक़िब तो नहीं
दूरियों से गुजरता है बहोत अब बुलाऊँ कैसे
यूँ तो सदियों तक दरवाजों को आजमाते रहे
अपने आने की तारीख न बताई तो जाऊँ कैसे
ज़र्रा ज़र्रा मेरी खामोशियों से बात करता है
ये बता अपने लफ़्ज़ों में तुझे उलझाऊँ कैसे
इश्क़ का असर इतना काबिज़ होता रहा
धड़कने टूटती है बहोत असर दिखाऊँ कैसे
जाने क्या बात है आँखों को बड़ा रोना आया
मिलते जो दरमियाँ से उनसे ही छुपाऊँ कैसे
बाद मुद्दत के सही कोई पैगाम दे जाया करो
तेरी नजदीकियों को खुद से जुदा कराऊँ कैसे
जाने वालों से उम्मीदों का न सिलसिला रखना
कोई पूछे न मिलने की वज़ह तो बताऊँ कैसे
गर्द इतनी थी उड़ी रास्तों से जब यादें गुजरी
धुंद में उलझे उलझे सितारों को उड़ाऊँ कैसे
कितनी शिद्दत से तेरे अफ़साने रश लिखती है
एक बार इतना बता दें कि तुझे जताऊँ कैसे
Rashmi Ranjan