//वह आँखें फ़लक पर एक सितारा ढूँढ रही है//
एक अजीब सी महक है यहाँ,
ज़मीन पर चेहरा दिखता है,
ठन्डी ठन्डी हवा है इस कमरे में ...
और अंदर जैसे आग जल रही है !
बूँद बूँद बूँदें टपक रही है,
कभी लाल, कभी बेरंग ...
दो बेजान आँखें इधर उधर भटक रही है,
जैसे कुछ सवालों का जवाब ढूँढ रही है!
वक़्त बहुउउउउउउत लम्बा है यहाँ,
दिन रात सब एक जैसे है ...
कुछ लम्हों के बाद वो लम्हा आ जाता है,
एक दर्द से मुक्ति .. और कई सुई चुभ जाती है!
बात करने का अब मन नही है,
जब था ... तब लोगों के पास वक़्त नही था।
पर, अच्छा लगता है, सबको एकसाथ देखकर,
कुछ वक़्त के लिए ही सही .....
पता नही, क्या इस बार सावन बरसेंगे !
क्या इसबार शरद पूनम आएगी !
क्या इसबार पतझड़ में सूखे पत्ते भटकेंगे!
क्या इसबार बसंत में पिक गाएंगे !
इस कमरे की सुफेद छत पर
सारी यादों की ज़िन्दा तस्वीरें नज़र आ रही है!
बचपन, जवानी ...और साँसों की ढलती रवानी,
कई आवाज़ें रह रह कर कानों में गूँज रही है !
वक़्त बहुउउउउउउत लम्बा है यहाँ,
घड़ी की धड़कन जैसे रुक रुक कर चल रही है!
एक अजीब सी महक है यहाँ,
और वह आँखें फ़लक पर एक सितारा ढूँढ रही है !
Bokul.
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