गज़ल
तुमको पास बुलाती आंखें,
ख्वाबों को दुलराती आंखें।
जब भी तीर चलाती दुनिया,
हमको बहुत रुलाती आंखें।
अपना दरपन देखो पहले ,
नुक्स कई दिखलाती आंखें।
महफ़िल में बैठे हैं हम-तुम,
सबको भेद बताती आंखें।
भीतर बैठा एक अजाना,
उससे भी मिलवाती आंखें।
आंखों की भाषा समझो तो,
गणित कई सुलझाती आंखें।
सारे जग को प्यारी 'पूनम'
बच्चों की मुस्काती आंखें।
डॉ पूनम गुजरानी
सूरत
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