एक माँ का जीवन अपने बच्चे के ही इर्द गिर्द घूमता रहता है,जब वो छोटा होता है तो उसकी मासूम हरकर्तो को देखने में,अपने बच्चों को बड़ा होते देखने में ही उम्र कब बीत जाती हैं पता ही नही चलता।
एक मां की आंखों में अपने उस छोटे से बच्चे के लिए कितने बड़े बड़े सपने तैरने लगते है।वो उस बच्चे के बचपन में जैसे अपना ही बचपन दोबारा जी उठती है। कितनी भी कठनाइयों हो उस वक़्त पर मां अपने सारे दुख भूल कर अपने बच्चों के लिए सपने बुनने में ही अपनी वो उम्र बिता देती है।
पर वो वक़्त बहुत कठिन होता है,जब बच्चों के बड़े होने के बाद उनकी पढ़ाई या भविष्य के लिए उसे अपने बच्चों को अपने से दूर जाने देना ही पड़ता है।तब मानो अचानक ही एक खालीपन जीवन मे आ जाता हैं।वो वक़्त जो हर लम्हा बच्चों के पीछे पीछे भागते ,खेलते बिता ,अचानक ही जैसे रुक जाता है।।एक रिक्तता आ जाती हैं।मन में खुशी तो रहती है पर एक खालीपन आ जाता है,जैसे उसकी भागती दौड़ती दुनियां एक दम ही रुक सी गयी हो।
बच्चे अपने कैरियर में आगे जाते जाते है,और मां का जीवन वहीँ उनके बच्चों के बचपन मे ही रुका रह जाता है।
एक अजीब ही कश्मकश होती है एक माँ के जीवन की,वो हर पल अपने बच्चों के साथ रहना चाहती है,और अपना ही मन कड़ा कर के उनके उज्जवल भविष्य के लिए उनके रास्ता की बाधा नही बनती।खुद को ही समेट लेती है,बच्चों के बचपन की यादों में।।।