ये जो आग उठी है नाकाम इश्क से माचिस की रगड़ दिला चुकी है दिल को अब बस इस आग को कभी बुझने नही देंगे हम , अपने लब्जो से दुनिया को भी राख कर देगें
जब मुकदर में फनाह होना ही लिखा है तो भड़कर राख होने में क्या हर्ज है इंसान को मरने से पहले उसका जिंदा होना जरूरी है ...
-Pradip Bakraniya