सब अपनी-अपनी तरह से बनेंगे क्रूर,
कोई देशभक्ति का नाम देगा,
तो कोई समाज सेवा का नाम,
अपने को करेंगे गौरवान्वित
इससे धर्म-संस्कृति
अक्षुण्ण होगी।
कोशिश यही रखनी है कि
केवल दोषारोपण किया जाए।
अपना दोष दूसरों के सिर डालना है।
कोई विरोध न करे।
करनेवाले को बाहर करना।
वह संस्कृति की तरह आएगी
उसका कोई विरोधी न होगा
अन्य जन खामोश रहेंगे।
टुकुर - टुकुर देखेंगे।