वो ग़ुलाब अब भी मेरी किताब में पड़ा तेरा इंतजार करता है..
जिसे तूने प्यार से देते हुए कहा था, "हमेशा के लिए मेरे बनोगे क्या?"

-सिद्धार्थ रंजन श्रीवास्तव

Hindi Shayri by सिद्धार्थ रंजन श्रीवास्तव : 111758680

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