कुछ रिश्ते संभालते संभालते अपने सपने छूट गये,
पता ही नहीं चला कब अपने रूठ गये,
मनाना चाहा बहोत मगर,
पता हीं नहीं चला कब सब छूट गया ।
सबको साथ रखकर चलना चाहा मगर,
पता ही नहीं चला कब सबका साथ छूट गया,
'धुप्स' राहे बहोत मुश्केल थी पता था सबकुछ,
तो क्युं ?
पता ही नहीं चला कब सांस तूट गई।
पता ही नहीं चला कब सांस तूट गुई।
-Dhrupa Patel