वो दो बारहसिंगा जो मेरे खेत में घूमा करता था।
हर पल साथ ही रहता था। साथ ही खाता था।
गलतफहमी की दीवार उससे जो टकराया था
दुनिया की नजरों से वह भी बच नहीं पाया था।
हो गया एक दूसरे से दूर जो कभी हम साया था।
वही आज अलग-अलग तन्हा समय बिताता था।
आंखें नम और चेहरे पर उदासीयों का छाया था।
दूर रहकर भी एक दूसरे के सजदे में सर झुकाता था।
ना कोई शिकायत ना बद्दुआ ना कोई पछतावा था
वह तो गम हो या ख़ुशी हर पल मुस्कुराता था।।
अम्बिका झा ✍️
-Ambika Jha