'ए जिंदगी' तुझसे बड़ी शिकायतें होती थी,
तुझे बिना समझे तुझसे ख़फ़ा रहती थी..
मालुम तो तब हुआ जब तुझे समझने लगी,
इस सफर की सच्ची शिक्षक ही तुम निकली..
गिरा के सीखा रही हो, रुला के समझा रही हो,
हकीकत से रुबरु कर सही राह दिखा रही हो..
फिर पता चला ये इतनी भगदड क्यु मची है,
इस पाँव को जहाँ ठहरना है वो मंजिल मिल चुकी है..
रास्ता काफी लंबा है पर सफर बड़ा ही सुहाना है,
मंजिल पर पहुचने से पहले मुसाफिर बन जाना है..
'ए जिंदगी' अब तू मुझे बड़ी प्यारी लगती है
थोड़ा-सा इंतजार कर..
अभी तो तेरे, मेरे किस्से की कहानी लिखनी है.... ✒️❤️