मै शब्दों का क्रांति ज्वार हूँ, वर्तमान को गाऊंगा।
जिस दिन मेरी आग बुझेगी, उस दिन मै मर जाऊंगा।।
मै धरती पर इंकलाब के स्वर की एक निशानी हूँ।
लिखते- लिखते अंगारा हूँ, गाते-गाते पानी हूँ।
कलम सिपाही बनकर जिंदा हूँ, किसानों के भूखे बच्चों से शर्मिंदा हूँ।
उस दिन मेरी आग बुझेगी, जिस दिन कृषक न भूखें होंगे।
मै शब्दों का क्रांति ज्वार हूँ, वर्तमान को गाऊंगा...
- विवेकानंद राय