शानदार कविता .
# विषय .दीपक ***
दीपक अंधेरे ,को रोज मिटाता ।
खुद जल कर ,उजाला देता ।।
राह भटकते को ,राह दिखाता ।
कभी कुछ ,किसी से नही मांगता ।।
अपने कर्तव्य ,को रोज निभाता ।
पर मानव हर ,काम का मूल्य चाहता ।।
कभी बिना मूल्य ,कुछ काम नही करता ।
हमेशा दुसरे की ,राह में रोडे सजाता ।।
कभी उसका मार्ग ,प्रशस्त नही करता ।
दीपक वह रोज ,अपने धर में जलाता ।।
पर उससे कुछ ,प्रेरणा नही लेता ।
फिर भी अपने ,को बहुत होशियार समझता ।।
ईश्वर भी उसको ,देख कर हंसता ।
पर वह सुधरने ,का नाम नही लेता ।।
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