अगर,मगर,काश में गुम क्यों रहते हों,क्यों प्रेम ढूंढते हो हर गली,प्रेम ढूंढने से नहीं,अपितु स्वयं के तलाश में गुम हो जाने से मिलता हैं, प्रेम तो कर्मयोगी हैं,अनासक्त समर्पण का प्रेमी हैं,पहचान लो प्रेम की अद्भूता को..जो कहता हैं..
परछाइयों से नही स्वंय से प्रेम करो।।
©®अनामिका अनूप