शीर्षक-मेरी माँ
युही बैठा मैं सोच रहा था
मेरी माँ के बिखरते सपनो को मैं जोड़ रहा था
कभी प्यार से तो कभी उसकी डांट से
मैं अपना प्यार पा रहा था
जीवन मे कभी आंशु तो कभी दुख भुलाके
खुद गीले में सोती माँ सूखे में मुझे सुलाक़े
रातभर जाग कर सुलाया जिसने
उंगली पकड़के चलना सिखाया जिसने
मुश्किल कि घड़ियों में गले लगाया है वह तू है माँ
मैं सारी परेशानिया और गम भूल जाता हूं
जब मेरी माँ के सजदे मे सर जुकाता हूं
शब्दो से माँ का कोई मोल ना होगा
माँ मेरी जिंदगी में तुझसा कोई अनमोल न होगा
मेरी प्यारी माँ, ओ मेरी भोली माँ