मैं कौन ?
एक नारी, आम जैसी
काली न गोरी
बांदी ना रानी।
जन्म के समय मेरे चेहरे पर एक भी नक्श नहीं था
इसलिए मैंने अपनी मिट्टी फिर से गूंध ली•••
अपने हाथों से अपना चेहरा बनाया
मेरा चेहरा बहुत सुन्दर नहीं, पर नक्श पूरे हैं
जन्म के समय मेरा नाम भी कोई नहीं था
एक नाम मैंने अपने आप रख लिया।
मेरा नाम बहुत ऊंचा नहीं, पर मतलब पूरा है•••
तवारीख मेरे हक में नहीं थी
उसने तीखे - तीखे कांटे मेरे पल्लू में बांध दिए
समाज मेरे खिलाफ था,
उसने मेरे सिर पर अंधेरे का तंबू तान दिया
ताकि मै आसमान कभी न देखूं•••
मैं किसी चांद तारे से बात न करूं
मेरे दिल को वह बर्ताव अच्छा न लगा।
उसने सलाह दी, आओ चले जोगी बन जाये
पर जंगल - जंगल कैसे जाती?
मेरे पांव में लोहे की बेड़ियां थी,
मैं खामोश रही।
रिश्ते नाते सब छोड़ दिए,
किताब की ओट में मुंह छिपाकर एक कोने में लगी।
किताब को मेरे दिल का पता था
उसने मुझे कई बातें बतायी।
एक नयी दुनिया के बारे में कहानी सुनाई।
फिर एक दिन आया,
मैंने खुद कलम हाथ में पकड़ ली•••
#अमृता_प्रीतम_
🥀खामोशी के आंचल में 🥀