मन बनाया सोचा कुछ स्याह लिखूँ
तुम्हें लिखूं या,तुम्हारी फजीहत लिखूँ
दिल नें कहा जो लिखूं बेबाक कलम रखूँ
ईमान बोला आज कुछ नसीहत लिखूँ
वो पुछता है हाल क्या है मेरा
मुझे फुरसत नहीं उससे,कैसे कैफियत लिखूँ
जानता है वो सब तवारीख मेरी
खैरियत लिखूँ भी तो कैसे लिखूँ
हुजूम ने कहा,वो लूट चुका गैर की बाहों में
तहज़ीब है नियत में, कैसे उसे तवायफ़ लिखूँ
बेखबर थे अब तक 'सनम ए अश्म' है अपना
बेनकाब हुआ फिर भी सोचा 'सदफ' लिखूँ
#M -kay