फूल
ओस की बूंदे गिरे,मैं डर जाता हुँ
तोडो़ मत मुझे ,मैं सिकुड़ जाता हुँ
शवों पर सजकर बारबार,मैं दहक जाता हुँ
तोडो मत मुझे ,मैं सिकुड़ जाता हुँ
इतर की डिब्बीमें बंध ,मैं ऊब जाता हुँ
तोड़ो मत मुझे ,मैं सिकुड़ जाता हुँ
यहाँ वहाँ घुमके, मैं थक जाता हुँ
पौधा ही है जगह जहाँ, मैं सँभल जाता हुँ
देखो सिर्फ मुझे ,अपना समझकर
तोडो मत मुझे ,मैं सिकुड़ जाता हुँ।
-मनीषा