ज्योत प्रीत की कान्हा से, जिसने भी कभी लगायी है।
मोहन ने भी दूनी करके, बस सूद सहित लौटायी है।।
मुठ्ठी भर चावल के बदले,दो लोकों को दे देते हैं।
मित्र सुदामा की विपदा को, अपने सिर पर ले लेते हैं।।
पार्थ सारथी बने कृष्ण,अश्वों की बागें थामी थीं।
सबके ही मान मिटा डाले,होती सबको हैरानी थी।।
ग्वाल-बाल संग केशव भी,बस माखनचोर कहाते हैं।
जो देवराज का पल में ही,दर्पों का शैल ढहाते हैं।।
गोविंद यशोदा को लखकर,बस छड़ी देखकर रोते हैं।
जिनकी भृकुटि से महाकाल,पल में नतमस्तक होते हैं।।
#ज्योत