#Qualified /लायक़

पिछवाड़े की बालकनी पर,
रोज़ आ बैठता है यह बंदर,
मुठ्ठी भर दाने को
भूख मिटाने को
निराला, भोला-भाला।

मगर नहीं, ज़रा रुकिये,
इसके हाथों को भी तकिए,
जो कोशिश में रहते हैं,
कि कुछ उठा लें,
चोरी से ही सही,
कुछ तो खा लें।

क्षुधा, नासपीटी,
चीज़ ही है ऐसी,
कि जो थे कभी,
वृक्षों के नायक,
अब रह गए सिर्फ ,
चोरी के लायक़।।

Hindi Poem by Yasho Vardhan Ojha : 111467155

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now