प्रेम वह नहीं है
जो अधिकार पा ले
एक चुटकी सिंदूर भरकर
प्रेम वह है
जिसमें सुगंध
याद रह जाये उम्र भर
पहले समर्पण की,
प्रेम वह है जो
दूर रहकर भी
इक डोर बांधे रहे
प्रेम वह है जो
जिंदगी भर
परवाह करता है
एक अपनेपन से
या फिर अपना
फर्ज मानते हुए,
प्रेम तो वह है
जो दिखता नहीं लेकिन
हर सांस में घुला रहता है
जिंदगी बनकर,
प्रेम वह नहीं जो
जग हंसाई कराये
प्रेम वह है जो
गुमनाम रहता है
डायरी में लिखी
एक अधूरी कविता बनकर,
प्रेम वह है जो
हर दर्द को महसूस करे
दिल से दिल तक
आंख से पलकों तलक
प्रेम वह है जो
बस जाता है सांसों में
एक "खुशबू" बनकर!