इंसानों से ज़्यादा तो ये हवा दिल की बात सुनती है।
लहरा कर, बहका कर, यूँ ही पलकों को झटका कर
अपने दिल का भी हाल-ऐ-बयां करती है।
विज्ञान को नकार उस यथार्थ की बात करती है।
हां...देती है ये पैग़ाम भी, सबसे जुदा होने का,
न दिखाई देकर भी सब कुछ वश में करने का,
हां....ये हवा ही तो है....जो मुझे मुझमें मिला करती है।
सब के होने पर भी होते अकेलेपन को भरती है,
ये हवा आजकल मुझसे बातें करती हैं।
--कार्तिका सिंह