ढेर सारे दिन
ऊन सभी दिनों मे
जब हम साथ नही थे,
तुम्हारी आवाज़ मेरे कानों तक नही आ रहि थी,
और मेरे शब्द तुम तक नही पहुंच पा रहे थे।
उनमें से हर दिन ,
मैं तुम्हारे साथ होना चाहता था,
पर ऐसा ना हो पाया
यूं तो वजहों मे नही जाता मैं,
पर ज़िन्दगी ने घेर लिया था मुझे ,
तुम ही कुछ कह दो इसका इन्तज़ार तो था ही,
तुम्हारी ना झेलने की हिम्मत भी ना जुटा पाया।
अब, और रुकना नही है,
ना कोई इन्तज़ार ना झिझक,
बस साथ चलने और चलते रहने का इरादा।।
साथ ना होने के वो सारे दिन,
जब,
तुम्हारी कमी,
बहुत गहरे से खली
हर दिन ,
लगातार-बारबार।।
ऊन ढेर सारे दिनों में,
तुम्हे कहने की सोचता रहा,
कि ,
आओ उस फ्रेम को भर दो
जिसमे
सिर्फ तुम्हारी तस्वीर ही फबेगी।