मजदूर ही मजबूर
हे !महामारी तू क्यों काल बनकर आई।
हम मजदूर हैं इसीलिए तो मजबूर हैं ।।
क्या तुमको हम पर रहम नहीं आई।
हे! महामारी तू क्यों काल बनकर आई।।
रोजी रोटी ही मेरा सहारा।
मैंने तेरा क्या था बिगाड़ा।
ना ही छत ,ना ही माझी, ना किनारा।
मेरी मेहनत ही है मेरा सहारा ।।
क्या तुझको इस पर भी दया नहीं आई।
हे !महामारी तू क्यों काल बनकर आई।।
मेरा साहस ही है मेरा पहिया।
चाहे समतल हो चाहे हो दरिया।
जेब में ना है पैसा ना ही रुपैया।
भुखमरी ने बना दिया है पईया।।
हे महामारी तू क्यों ग्रहण बनकर छाई।
क्या तुम को जरा सी भी लज्जा ना आई।
क्यों दुर्घटना की चादर मौत को बनाई।।
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