क्या आस करें वरदानो की,हम शापों के अभ्यासी हैं।
रहे सन्यासों से शून्य मग़र, फिर भी हम सन्यासी हैं।।
आधे हुए गृहस्थ कभी,फिर विरक्त हुए आधे-आधे।।
ध्यान,धारणा,और समाधि कब लगे हमे साधे-साधे।।
जीवन ,मरण अर्पण,तर्पण,के सभी प्रश्न आभासी हैं,
रहे सन्यासों से शून्य मग़र, फिर भी हम सन्यासी हैं।।
@Pawan"अन्जान"