यह कैसी घड़ी आई है!
छुट्टियां तो है पर मुसीबत सर पर लाई है।।
सुबह - सुबह की दिनचर्या,
ऐसे करना वैसे करना,
घर में रहना बाहर निकलना,
गलत हुआ सुधार करना
छा गई इन सब पर काल की बदली,
ओह! पंछियों की पिंजर बाध्य गति,
निहित अन्तर मन में समाई है,
यह कैसी घड़ी आई है!
छुट्टियां तो है पर मुसीबत सर पर लाई है।।
तन भी चंचल मन भी चंचल,
आत्मस्फूर्ति सौर्य ऊर्जा जगाई है,
मूर्छित हो जाएंगी ये चंचल किरणें !
अरे छठ जा कोरोना की काली घटा,
क्यू महाकाल बनकर तू आई है।
यह कैसी घड़ी आयी है !
छुट्टियां तो है पर मुसीबत सर पर लाई है।।
सोचा न था कि कदम हमारे,
चलते - चलते ही रुक जाएंगे,
भाव भंगिमा के कल्पित मन को,
यूं ही पूर्ण विराम लग जाएंगे,
ये तो शब्द समूहों की श्रेष्ठतम श्रृंखला,
जो कि रिश्तो में मिठास बनाई है,
उनके मुखार विंदु की शोभा,
चंचल नेत्रों से वर्णित ना हो पाई है,
यह कैसी घड़ी आई है!
छुट्टियां तो है पर मुसीबत सर पर लाई है।।