Hindi Quote in Poem by Rahul Gupta

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#उज्ज्वल

पैरों से अपनी उंगली घुमाना शुरू करते मैं
उसको धीरे धीरे ऊपर लाता हूँ,
जैसे हर आकृति को महसूस करते हुए,
तुम्हारे घुटने के उभार पर चढ़ना, फिर मुलायम जांघों पर रेंगना,
कमर से होते हुए, उभरे सीने पर और फिर गर्दन से,
एकदम से उछलती है,
तब उस नक्श पे पहुंचती है, जो बेहत खूबसूरत है,
तुम्हारा चेहरा,
ठोड़ी से लबों पे जाके, जब नाक के ऊपर रेंग के,
आंखों तक पहुंचती है,
तो ठीक उसी वक़्त, मेरी आँखें उन #उज्ज्वल मोतियों पे टिक जाते हैं,
उंगली का सफर खत्म हो जाता है,
और इसी के साथ जुल्फें बुरा मान जाती हैं।

Hindi Poem by Rahul Gupta : 111406620
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