बिन जल मछली
सुन कर उनका दिल धक से कर गया एक बार फिर से! बस अस्फुटित से बोल उनके फूटे।
“हे ईश्वर! दूसरी बार उम्मीद जगा कर आख़िर क्यूँ?आप ने ऐसा किया आप गुड दिखा कर ईंटा मार रहें हैं मुझे। जीवन सफ़र के किनारे पर लगी मैं और कितना इंतज़ार करूँ?”
फ़ोन किनारे रख उन्होंने मुँह से चादर तान ली वह नहीं चाहती थी कि उनके भीगे कोरों को कोई देख पाए।
तभी कमरें का दरवाज़ा पीछे धकेलते हुए उन्होंने ने प्रवेश किया और उन्हें इस क़दर लेटा देख परेशान होते हुए पूछा।
“क्या हुआ तबियत तो ठीक है?”
“मुझे क्या होगा?”
उन्हें ने उनकी चादर हटाते हुए कहा।
“कुछ तो हुआ है।”
करवट बदलते हुए वह बोली।
“तुम नहीं समझोगे।”
पास रखे उनके फ़ोन को देख फिर कुछ देर के मौन के बाद वह बोले।
“क्यूँ नहीं समझूँगा? क्यूँ कि मैं पुरुष हूँ मुझे फ़र्क़ नही पड़ता।
अरे! मैं सब समझता हूँ अभी सैर के लिए नहीं गया था मैं उसी का हाल जानने हॉस्पिटल तक गया था।।”
इतना सुन वह उठ कर बैठने की कोशिश करती हुई ज़ोर लगा कर बोली।
“क्यूँ गए आप वहाँ तक आप को अपनी इज़्ज़त नहीं प्यारी है फिर कुछ वह बोल देती तो पहले कम सहा है आप ने जो फिर से वहाँ चले गए।”
सहारा दे उन्हें लिटाते हुए वह बोले।
“मुझे अपनी और तुम्हारी दोनो की इज़्ज़त का ख़्याल है।मैं बस डॉक्टर से हाल पूछ कर चला आया हूँ।”
“क्या कहा डॉक्टर ने?”
“छोड़ो तुम सुन न सकोगी।”
सब कुछ जान लेने के भाव उनके चेहरे पर देख वह अफ़सोस भरे शब्दों में उनका हाथ कस कर पकड़ बोले।
“अधिक नशा करने की वजह से ही दो बार गर्भपात हुआ है और अब वह कभी माँ नहीं बन पाएगी।”
हिचकियाँ लेते हुए वह बोले जा रहे थे।
“बस इसी सब की वजह से ही तो मैं नशा करने से उन दोनो को माना करता था आख़िर बाप हूँ।
मैं उनकी आधुनिकता का बाधक नहीं था। बस उसे माँ बनता हुआ देखना चाहता था। और वह मुझे अपना दुश्मन समझने लगी।”
एक दूसरे को सहारा देते हुए दोनो की ही आँखो से गंगा यमुना बह रही थी और दिल बिन जल मछली सा तड़प रहा था।
ज्योत्सना सिंह
लखनऊ
11:16pm.
3-3-2020