#आदर *
शसि तू किधर चली *
"मीरा, तुम मुझे प्यार नहीं करती हो ! इधर कई महिनों से देख रहा हूँ, आफिस से आने के बाद तुम चाय - नाश्ते के लिए भी नहीं पूछती ! अपने में व्यस्त रहती हो!
पहले, जब मैं बाहर से आता था तो शरबत- चाय लेकर तुम हाजिर रहती थी। देखो, घर में सुख -सुविधा का सामान भरा पड़ा है। दिनोंदिन हमारी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।फिर तुम्हारा मूड क्यों उखड़ा रहता है ? सच सच बताओ, बात क्या है? " पति महोदय आज अधिक मूड में थे। पत्नी का हाथ पकड़ते हुए उबल पड़े।
"अरे... छोड़िए मेरा हाथ। " पत्नी झल्लाकर बोली।
" क्या किया मैंने? ऐसे हाथ क्यों छुड़ाया ? जैसे लगता है मैंने गंदे हाथों से तुम्हें छू लिया हो!? " पति ने तमतमाते हुए पलटवार किया।
" हाँ, बहुत गंदा हाथ रहता है आपका। जब से आफिस में आपको डबल प्रमोशन मिला है, तब से आप शसि से बेहद प्यार करने लगे हैं। उसकी गंध आपके होठों से आते रहती है। ये सब मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है।
कान खोलकर सुन लीजिए, जब तक आप मेरी सौतन ' शसि' का परित्याग नहीं करेंगे , मैं आपके निकट नहीं आऊँगी।"
सुनते ही पति का पारा सातवें आसमान चढ गया। "अरे , हद हो गई! तुम्हें अपने पति पर इलजाम लगाते हुए शर्म नहीं आती ?!" इतना कहते हुए पति लाइटर से सिगरेट सुलगाने लगा।
" फिर लगाया ना सौतन को होठों से ?!" पत्नी रौद्ररूप धारण कर बरस पड़ी ।
इस कोलाहल के कारण पति के मुँह से सिगरेटऔर दूसरे हाथ में जकड़ा शराब का बोतल अचानक छूट गया।
फर्श पर गिरने के साथ एक आवाज गूंज उठी, " अरे...शसि तू किधर चली ?" (श...शराब सि...सिगरेट)
मिन्नी मिश्रा/ पटना
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